रविवार, 5 जुलाई 2009

ज़िन्दगी को इससे ज्य़ादा और क्या कुछ चाहिए?

(1)

कैसी होगी तेरी रात परदेस में,
चाँद पूछेगा हालात परदेस में।
ख्व़ाब बनकर निगाहों में आ जाएँगे,
हम करेंगे, मुलाकाल परदेस में।
बादलों से कहेंगे कि कर दे वहाँ,
आँसुओं की ये बरसात परदेस में।
रंग चेहरे पे लब पे हँसी दिल को चैन,
कौन देगा ये सौग़ात परदेस में।
तुमको महसूस होती नहीं जो यहाँ,
याद आएगी वो बात परदेस में।
हर क़दम पे नज़र तुमको आएँगे हम,
देखना ये करामात परदेस में।
ज़ेहन की वादियों में सजालो इन्हें,
काम आएँगे जज्ब़ात परदेस में।

(2)

आपसे जब सामना होने लगा,
ज़िन्दगी में क्या से क्या होने लगा।
चैन मिलता है तड़पने से हमें,
दर्द ही दिल की दवा होने लगा।
ज़िन्दगी की राह मुश्किल हो गई,
हर क़दम पर हादसा होने लगा।
दोस्तों से दोस्ती की बात पर,
फ़ासला दर फ़ासला होने लगा।
जो ग़जल में शेर बनकर के रहा,
काफ़ियों से वो ज़ुदा होने लगा।
जैसे हो तस्वीर इक दीवार पर,
आदमी अब क्या से क्या होने लगा।
ये तुम्हारी याद है या ज़ख्म है,
दर्द पहले से सिवा होने लगा।

(3)

मोतियों की तरह चेहरा तेरा सच्चा लगता,
हमको दुनिया में कोई और न अच्छा लगता।
तेरे माथे पे जो बिंदिया है, सलामत रखना,
ये अँधेरों में कोई चाँद चमकता लगता।
किस तरह आँख मिलायें, कभी ये तो बतला,
तेरी पलकों पे सदा शर्म का पहरा लगता।
मैंने माँगा था इबादत में, इन्हीं लमहों को,
साथ में तेरे मुझे वक्त भी ठहरा लगता।

(4)

तेरे बिन ये पहला-दिन,
सूना-सूना निकला दिन।
सूरज किरनें धूप वही,
फिर भी बदला बदला दिन।
तेरे साये, ढूंढ़ रहा है,
कैसा है ये पगला दिन।
तनहाई के सन्नाटों में,
घूमा झुंझला-झुंझला दिन।
शाम तलक तड़पा यादों में,
फिर मुश्किल से सम्भला दिन।

(5)

ढूंढ़ता है आदमी, सदियों से दुनिया, में सुकून।
धूप में साया मिले, कमल जाये सहरा में सुकून।
छटपटाती है किनारों, पर मिलन की आस में
हर लहर पा जाती है, जाकर के दरिया में सुकून।
बेक़रारी है कभी, पूरे समन्दर की तरह,
और कभी मिल जाता है बस, एक क़तरे में सुकून।
ज़िन्दगी को इससे ज्य़ादा और क्या कुछ चाहिए?
लबस हो इक प्यार का, और उसके लमहात में सुकून।
हर सवाली चेहरे पे लिख़ी इबारत देखिए,
चैन है कि न आँखों में, और कौन से दिल में सुकून।
वो खुदा से कम नहीं लगता है, मुझको दोस्तो,
मेरे ख़ातिर माँगता है जो दुआओं में सुकून।
ये उसी दामन की भीनी खुशबू का एहसास है,
जो मुझे महसूस होता है हवाओं में सुकून।

10 टिप्‍पणियां:

  1. it's nice to read these very nice gazals... 'Kagaz ki' are the most beautiful lines in blog....
    my best wihes....

    amity,
    raman

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  2. ikramji, aap bhot puthri ar mithi gajla likho ho. kadai mhanri patrika me bhi bhejo.
    Ratan Jain, Editor-MARWARI DIGEST Masik, P.O.Parihara (churu)9828442520

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  3. blog ki duniya me aapka swagat hai janab. badhai. waqt mile to mera blog bhi dekhen. afridy.blogspot.com

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  4. Aapke blog per aapke ashaaraon se ru-b-ru hoker bahut achcha laga.kabhi mere blog per bhi tashreef layen.shukriya.

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  5. अस्सलामवालेकुम इकराम जी ,
    आपके ब्लॉग पर भ्रमण कर खूब लुत्फ़ उठाया | आपके ब्लॉग में समाजिक सरोकारों की महक व् धमक से रु-ब-रु होकर आनंद आया | आपने मिटटी की सोंधी महक एवं संवाद को बिम्बायित किया है | बधाई हो! मेरे ब्लॉग पर भी पधारो सायबा ! ब्लॉग की सामग्री बहुत पुराणी हो गयी है कुछ नया डालिए...
    गुलाम नबी
    आज़ाद न्यूज़
    www.gulamnabi86.blogspot.com

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  7. इकराम भाई,
    आपका ब्लॉग देखा.अच्छा लगा.`जिस्म कागज़ का, जान कागज़ की, ज़िन्दगी दास्तान कागज़ की,उनका धंधा दियासलाई का और अपनी दुकान कागज़ की` बहुत शानदार असआर है. आप तो वैसे भी बहुत उम्दा शायरी करते रहे हैं. मैं इसका कायल हूँ. अब ब्लॉग के ज़रिये आपकी नई-नई चीजें सामने आने का दरवाजा भी खुल गया है.तहेदिल से बधाई.

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  8. इकराम साहब, प्रणाम स्वीकार करें........ आप की ग़ज़लें पढ़ कर " जाँ निसार अख्तर " का एक शेर याद आ गया.........." हम से पूछो के ग़ज़ल क्या है, ग़ज़ल का फ़न क्या है. चंद लफ़्ज़ों में ज्यूँ आह छिपा दी जाये."

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  9. ekraam ji sadar namsakar rachanayen padhi vasatv me dil ko sukoon dene wali hain .sadhuwad

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  10. sir ,
    aap ka blog mila jaise " Sukun " mil gaya. maine apki kuch gazale 10 saal pahle padhi thi. Hamari school ki library se aapki ek book mili thi , jo mujhe bahut pasant aai thi. " bahut jyada "

    " jism kagaj ka jaan kagaj ki " to kamaal hai.mujhe ye book kharidni hai kahan se milegi sir plz meri help kar dijiye.

    Regards
    Yudhishthar Jaiman
    9899747688

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